हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य (Surya Dev) एक ऐसे देवता हैं जो साक्षात हमें दिखाई पड़ते हैं। सुबह और दिन सूर्य देव की कृपा से ही होता है। सूर्य देव न होते तो पूरा संसार में अँधेरा ही रह जाता। इशलिये हमें सुबह उठते ही सुध होकर सूर्यदेव को पानी चढ़ाना चाहिए फूल और अगरबत्ती से पूजा करनी चाहिए और श्री सूर्य चालीसा और आरती भी करनी चाहिए और ये सब तो हमरे हिन्दू धरम में भी लिखा है की इस पृथ्वी पर सबसे बड़ा देवता सूर्यदेव ही है।
श्री सूर्य चालीसा (Surya Chalisa) का पाठ करना बहुत ही शुभ माना गया है। इस पाठ और आरती को रोजाना पढ़ने से और आरती का गान करने से यश और सफलता मिलती है।
श्री सूर्य चालीसा
।।दोहा।।
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अंग ।
पद्मासन स्थित ध्याइये, शंख चक्र के संग ।।
।।चौपाई।।
जय सविता जय जयति दिवाकर । सहस्त्रांशु ! सप्ताश्व तिमिरहर ।।
भानु ! पतंग ! मरीची ! भास्कर ! सविता ! हंस सुनूर विभाकर ।।
विवस्वान ! आदित्य ! विकर्तन ! मार्तण्ड हरिरूप विरोचन ।।
अम्बरमणि ! खग ! रवि कहलाते । वेद हिरण्यगर्भ कह गाते ।।
सहस्त्रांशुप्रद्योतन, कहि, कहि । मुनिगन होत प्रसन्न मोद लहि ।।
अरुण सदृश सारथी मनोहर । हांकत हय साता चढ़ि रथ पर ।।
मंडल की महिमा अति न्यारी । तेज रूप केरी बलिहारी ।।
उच्चै:श्रवा सदृश हय जोते । देखि पुरंदर लज्जित होते ।।
मित्र, मरीचि,भानु,अरुण,भास्कर,सविता । सूर्य,अर्क,खग,कलिकर,पूषा,रवि।।
आदित्य नाम लै । हिरण्यगर्भाय नम: कहिकै ।।
द्वादस नाम प्रेम सों गावे । मस्तक बारह बार नवावै ।।
चार पदारथ सो जन पावै । दु:ख दारिद्र अघ पुंज नसावै ।।
नमस्कार को चमत्कार यह । विधि हरिहर कौ कृपासागर यह ।।
सेवै भानु तुमहिं मन लाई । अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई ।।
बारह नाम उच्चारण करते । सहस जनम के पातक टरते ।।
उपाख्यान जो करते तवजन । रिपु सों जमलहते सोतेहि छन ।।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है । प्रबलमोह को फंद कटतु है।।
अर्क शीश को रक्षा करते । रवि ललाट पर नित्य बिहरते ।।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत । कर्ण देस पर दिनकर छाजत ।।
भानु नासिका वास करहु नित । भास्कर करत सदा मुख कौ हित ।।
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे । रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे ।।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा । तिग्मतेजस: कांधे लोभा ।।
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर । त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर ।।
युगल हाथ पर रक्षा कारन । भानुमान उरसर्म सुउदरचन ।।
बसत नाभि आदित्य मनोहर । कटि मंह हंस रहत मन मुद भर ।।
जंघा गोपति, सविता बासा । गुप्त दिवाकर करत हुलासा ।।
विवस्वान पद की रखवारी । बाहर बसते नित तम हारी ।।
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै । रक्षा कवच विचित्र विचारे ।।
अस जोजन अपने मन माहीं । भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं ।।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै । जोजन याको मनमहं जापै ।।
अंधकार जग का जो हरता । नव प्रकाश से आनन्द भरता ।।
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही । कोटि बार मैं प्रनवौं ताही ।।
मंद सदृश सुतजग में जाके । धर्मराज सम अद्भुत बांके ।।
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा । किया करत सुरमुनि नर मेवा ।।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियमसों । दूर हटतसो भवके भ्रमसों ।।
परम धन्य सो नर तनधारी । हैं प्रसन्न जेहि पर तुम हारी ।।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन । मध वेदांगनाम रवि उदयन ।।
भानु उदय वैसाख गिनावै । ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै ।।
यम भादों आश्विन हिमरेता । कातिक होत दिवाकर नेता ।।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं । पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं ।।
।।दोहा।।
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहि जे नर नित्य ।
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य ।।
श्री सूर्य देव जी की आरती
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव ।
रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता ।
षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि ! ताता ।
जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव ।
नभमण्डल के वासी, ज्योतिप्रकाश देवा ।
निज जनहित सुखरासी, तेरी हम सब सेवा ।
करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव ।
कनक बदन महं सोहत, रुचि प्रभा प्यारी ।
निज मंडल से मंडित, अजर अमर छवि धारी ।
हे सुरवर रविदेव जय जय जय रविदेव ।