Varuthini Ekadashi 2023, जानें मंत्र, पूजा​ विधि एवं महत्व

Varuthini Ekadashi: एकादशी कृष्ण भगवान की प्रिय एकादशी है। गरुड़पुराण में विष्णु भगवान ने कहा है की जो भी भक्त एकादशी का व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और एकादशी सभी पापो से मुक्ति देने वाली और स्वर्ग की प्राप्ति होती है। वैसे तो सभी एकादशी का महत्व अलग अलग बताया गया है।

आज वरुथिनी एकादशी Varuthini Ekadashi व्रत है। हर वर्ष वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि को यह व्रत रखा जाता है। आज वरुथिनी एकादशी व्रत रखने और भगवान विष्णु की विधि सहित पूजा करने की परंपरा है। पूजा के दौरान विष्णु सहस्रनाम का जप किया जाता है।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ और भगवान विष्णु की आरती पूजा करना आवश्यक है। वरुथिनी एकादशी यह व्रत करने से शारीरिक पीड़ा एवं मानसिक दुख दूर होते है। और विष्णु कृपा से स्वर्ग की प्राप्ति भी होती है, जब राजा मांधाता को पुण्य फल प्राप्त हुआ था।

Varuthini Ekadashi

Varuthini Ekadashi पूजा मुहूर्त

  • वरुथिनी एकादशी या बरुथनी एकादशी
  • रविवार, 16 अप्रैल 2023
  • वरुथिनी एकादशी शुरू – 15 अप्रैल 2023, रात 08:45 बजे
  • वरुथिनी एकादशी समाप्त – 16 अप्रैल 2023, शाम 06:14 बजे
  • वरुथिनी एकादशी पूजा का मंत्र: ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:

वरुथिनी एकादशी व्रत एवं पूजा विधि |Varuthini Ekadashi

वरुथिनी एकादशी के दिन सुबह स्नान के बाद व्रत एवं पूजा का संकल्प हरेक भक्त को करना चाहिए। उसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापना एवं पूजा करनी चाहिए। पूजा में आप पंचामृत और पीले फूल, फल, पान, सुपारी, अक्षत्, तुलसी का पत्ता, धूप, दीप, कपूर जैसे चंदन,आदि का उपयोग करते हैं। इन सामग्री को कृष्ण भगवान को अर्पित करते समय ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जप करना चाहिए।

पूजा के बाद शाम को संध्या आरती करनी चाहिए और रात्रि के समय जागरण करना चाहिए। फिर अगले दिन स्नान के बाद पूजा और दान करना चाहिए सूर्योदय के पश्चात पारण करके व्रत को पूरा करते है।

वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा

एक बार युधिष्ठिर ने भगवान ​श्रीकृष्ण से वरुथिनी एकादशी व्रत के महत्व के बारे में समझने का निवेदन किया। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी ही वरुथिनी एकादशी है। इस एकादशी व्रत को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

एक समय में नर्मदा नदी के तट पर राजा मांधाता राज्य करते थे। वह व्यक्ति धर्मात्मा एवं दानी थे। एक बार वे जंगल के पास तपस्या कर रहे थे, तभी वहां एक भालू आया और उनके पैर को चबाने लगा। फिर वह राजा को घसीट कर जंगल में ले जाने लगा। इस दौरान राजा की तपस्या भंग हो गई और वे घायल हो गए।

उन्होंने भगवान विष्णु को मन ही मन ध्यान करने लगे और अपने प्राणों की रक्षा की प्रार्थना करने लगे। तब भगवान विष्णु प्रकट हुए और अपने चक्र से उस भालू को मारकर राजा मांधाता के प्राणों की रक्षा क। भालू के हमले में राजा मंधाता अपंग हो गए थे, इस वजह से वे दुखी और पीड़ा हो रही थी। उन्होंने भगवान विष्णु से इस शारीरिक और मानसिक पीड़ा को दूर करने का उपाय पूछा।

तब श्रीहरि ने कहा कि यह तुम्हारे पूर्वजन्म के अपराध का फल है। तुमको मथुरा में वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखना होगा और मेरे वराह अवतार की पूजा करनी होगी। उसके पुण्य प्रभाव से ही कष्ट और दुख दूर होंगे।

भगवान विष्णु के बताए अनुसार राजा मांधाता मथुरा पहुंच गए और विधिपूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा और वराह अवतार की पूजा की. इस व्रत के पुण्य फल से राजा मांधाता के कष्ट और दुख दूर हो गए, वे फिर से अच्छे हो गए. उनको भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग की प्राप्ति भी हुई।

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