विजया एकादशी
Vijaya Ekadashi, हमारे शास्त्रों में एकादशी व्रत का विशेष महत्व बताया है। विजया एकादशी व्रत के बारे में शास्त्रों में लिखा है कि यह व्रत करने से स्वर्णदान,भूमि दान,अन्न दान और गौ दान से अधिक हमें अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है और हमें मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
विजया एकादशी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी कहा जाता है। एकादशी श्री विष्णु को अत्यंत प्रिय एकादशी है, जो समस्त पापों को हरने वाली होती है। पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को विजया एकादशी की महिमा बताते हुए कहते हैं कि इस महान पुण्यदायक विजया एकादशी व्रत जो भी करता है उसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है, और उसके सारे शत्रु परास्त होते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसलिये विजया एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
विजया एकादशी पूजाविधि
विजया एकादशी इस दिन समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान श्री नारायण की उपासना करनी चाहिए। पूजा स्थल के ईशान कोण में एक वेदी बनाकर सप्त धान, जल कलश स्थापित करे इसे आम के पत्तों से सजाना चाहिए और भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए और पीले पुष्प, फल, तुलसी आदि अर्पित कर धूप-दीप से भगवान विष्णु की आरती पूजा करनी चाहिए।
इस दिन विष्णुजी के मंदिर में दीपदान करना बहुत फलदायी माना जाता है। इस दिन हरि भक्तों को किसी की भी निंदा,छल-कपट नहीं करना चाहिए, लालच और द्रेष की भावना से दूर रहना चाहिए श्री नारायण का ध्यान करना चाहिए। और यथाशक्ति विष्णुजी के मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करना चाहिए। और रात्रि जागरण भी करना चाहिए।
विजया एकादशी की कथा
कथा के अनुसार त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के वनवास काल के दौरान जब लंकापति रावण माता सीता का हरण करके लंका ले गया था तब प्रभु श्री राम ने सुग्रीव के साथ लंका प्रस्थान करने का निश्चय किया। जब श्री राम अपने सैन्यदल सहित समुद्र के किनारे पहुंचे,तब उन्होंने भयंकर जल जंतुओं से भरे अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा की हम किस पुण्य के प्रताप से हम इस समुद्र को पार कर पायेंगे।
तब लक्ष्मणजी बोले ‘हे पुरुषोत्तम ! आप सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन की दूरी पर बकदालभ्य मुनि का आश्रम है, उनके पास जाकर आप इसका उपाय पूछिए। लक्ष्मण जी की इस बात से सहमत होकर श्री राम बकदालभ्य ऋषि के आश्रम गए और उन्हें प्रणाम किया। और मुनि प्रभु राम को देखते ही पहचान गए कि ये तो विष्णु अवतार श्री राम हैं।
जो किसी कारणवश मानव शरीर में अवतीर्ण हुए हैं। महर्षि ने श्री राम से उनके आने का कारण पूछा। रामचंद्र जी कहने लगे हे ऋषे मैं अपनी सेना सहित राक्षसों को जीतने लंका जा रहा हूँ अतः आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बताइए। तब बकदालभ्य ऋषि बोले हे राम ! फाल्गुन कृष्ण पक्ष में जो विजया नाम की एकादशी आती है उसका व्रत करने से आपकी निश्चित विजय होगी।
साथ ही आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे। मुनि के कहने पर श्री राम जी सहित सभी ने इस व्रत का विधिपूर्वक पालन किया। इसके बाद उन सभी ने रामसेतु बनाकर समुद्र को पार किया और लंकापति रावण को परास्त कर युद्ध में विजय प्राप्त की। हमें भी कोई अच्छे से काम के लिए और मोक्ष के लिए विजया एकादशी का व्रत करना चाहिए।